नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से भाजपा सांसद सुशील मोदी (BJP MP Sushil Modi) काफी एक्टिव दिख रहे हैं। जैसे ही बिहार में बीजेपी (BJP) से नाता तोड़ कर राजद (RJD) के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सरकार बनी उसके बाद से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सुशील मोदी को फ्री हैंड दे दिया।
याद रहे कि सुशील मोदी ने ही पिछली बार महागठबंधन की सरकार को तोड़कर बिहार में एनडीए की सरकार बनवाई थी। उन्होंने एक के बाद एक 48 प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नीतीश कुमार को अपने पक्ष में किया था। इस बार भी बीजेपी ने उन्हें यह दायित्व दिया है कि वो नीतीश कुमार को इतना आइना दिखाएं कि नीतीश कुमार का आत्म स्वाभिमान फिर से जग जाए।
सूत्रों कि माने तो सुशील मोदी को एक बार फिर बिहार भाजपा में पूरी तरह से स्थापित किया जाएगा। बिहार में उपमुख्यमंत्री पद से हटाए जाने और फिर राज्यसभा सांसद बनने के बाद से सुशिल मोदी बिहार की राजनीती से दूर होते चले गए थे। अब भाजपा उन्हें एक बार से फूल पावर देती दिखाई दे रही है, ताकि वह बिहार भाजपा के तरफ से महागठबंधन सरकार को चौतरफा घेर सकें।
खबर है कि भाजपा सुशिल मोदी को बिहार इकाई की कमान देकर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने की भी तैयारी कर सुशिल मोदी के नज़दीकी सूत्रों की मानें तो सुशील मोदी इस बात के लिए राज़ी भी हो गए हैं और वह लगातार पार्टी के अंदर संगठन में भी काफी दिलचस्पी ले रहे हैं। जिस तरह से सुशील मोदी लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगे हैं और राजद के दागी चेहरों को उजागर करने लगे हैं, इससे यह स्पष्ट है कि भाजपा सुशील मोदी पर एक बार फिर से भरोसा करने का मन बना चुकी है और यही वजह है कि 2024 के लोक सभा चुनाव के मद्देनज़र सुशील मोदी को प्रदेश अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद दिया जा सकता है।
बिहार में बीजेपी के सभी दिग्गज नेता भी मानते हैं कि सुशील मोदी जैसे अनुभवी नेता का लोहा मानते हैं उनके अनुसार सुशिल मोदी में वह काबिलियत है कि वह संगठन को बेहतर तरीके से चला सकते हैं। उन्हें संगठन चलाने का पूरा अनुभव है और पार्टी उन्हें जब भी जो जिम्मेदारी सौंपती है उसे वह बखूबी निभाने में सफल रहते हैं।

हालांकि, सुशील मोदी और नीतीश कुमार की दोस्ती काफी पुरानी है और गाहे बगाहे इसकी चर्चा भी होती रही है, ऐसे में सुशील मोदी के पास वो तंत्र है कि नीतीश कुमार पर निजी हमला किए बगैर वो उन्हें RJD से अलग कर सकते हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव के आंकड़े पर नज़र डालें तो लालू यादव की राजद को सबसे अधिक 23.11 प्रतिशत, जदयू (JDU) को 15.42, कांग्रेस (Congress) को 9.53 और वामदल (Left Parties) को 4.64 प्रतिशत वोट मिला था, जबकि बीजेपी (BJP) के 19.46 और राम विलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की लोजपा (LJP) के 5.66 प्रतिशत वोट शेयर के साथ एनडीए (NDA) के पास केवल 25 प्रतिशत ही वोट शेयर होता है। भाजपा की सबसे बड़ी चिंता यही है कि ये आकड़ा यदि लोकसभा में भी बना रहा, तो बिहार में अगामी लोकसभा चुनाव (Parliament Elections) में उसका बड़ा नुकसान हो सकता है। शायद इसी वजह से भाजपा के द्वारा सुशील मोदी को आगे करके उन्हें ये ज़िम्मेदारी दी गई है कि बिहार में सत्तारुढ दलों को अलग अलग करें ताकि लोकसभा चुनाव में बड़ा नुकसान होने से बचा जा सके।
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