लखनऊ: एक समय कभी सपा में ऊंची हैसियत रखने वाले शिवपाल यादव आज ऐसे रास्ते पर खड़े हैं जहां उनके और अखिलेश यादव के संबंध सामान्य होने की कोई संभावना नहीं नज़र आ रही। शिवपाल स्वयं समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाना चाहते हैं लेकिन अखिलेश यादव उनसे मिलने या उन्हें राजनीतिक महत्व देने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि शिवपाल अखिलेश यादव के सामने झुक गए हैं?
शिवपाल ने अखिलेश यादव को लेकर अपनी भावनाएं व्यक्त की। उन्होंने कहा कि नेताजी यानी मुलायम सिंह हमेशा से ही परिवार को साथ लेकर चले। वे दुश्मनों को गले लगाकर आगे बढ़ते रहे। अगर भतीजा अखिलेश भी इसी रास्ते पर चले तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। मैंने कई बार अखिलेश यादव से मुलाकात करने का समय मांगा है लेकिन अब तक समय न मिला। शिवपाल ने उत्तर प्रदेश में साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अखिलेश को आशीर्वाद देने को लेकर कहा कि चाचा शब्द में आत्मीयता है। कौन आशीर्वाद नहीं देना चाहेगा? मैं चाहता हूं कि एक विचारधारा वाले सभी दल एकजुट होकर 2022 का चुनाव लड़ें और जीत हासिल करें। इस संदर्भ में मेरी प्राथमिकता समाजवादी पार्टी है। शिवपाल यादव की इन बातों से यह तो स्पष्ट है कि वे सपा के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। जब अखिलेश यादव से शिवपाल से मुलाकात को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि फोन पर बात की जा सकती है। अभी मुलाकात करना सही नहीं है क्योंकि वे मुख्यमंत्री की प्रशंसा करते हैं। अखिलेश ने ये भी कहा कि उनका एक ही दल है और उनके लिए जसवंत नगर सीट छोड़ दी गई है। बाकी उनके जो साथी समीकरण और हालातों के अनुसार ठीक रहे तो उनको लेकर विचार किया जाएगा। इसके अतिरिक्त अखिलेश ने कहा कि सरकार बनाए और सम्मान पाएं। अखिलेश यादव की बातों से यह संकेत मिल रहे है कि वे शिवपाल यादव को खास अहमियत नहीं देना चाहते। दरअसल साल उत्तर प्रदेश में साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही वर्चस्व को लेकर विवाद हो गया था। जिसके बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर अपना राज कायम कर लिया। तभी से अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गहरे मतभेद हो गए। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और स्वयं मुलायम सिंह ने दोनों के बीच सबकुछ ठीक करने की बहुत कोशिशें की लेकिन ऐसा न हो सका।
वहीं जो शिवपाल यादव सपा में राजनीतिक रूप से ताकतवर माने जाते थे उनके पार्टी से अलग होने के बाद उन्हें बड़ी नाकामी का सामना करना पड़ा। वे फिरोजाबाद सीट पर केवल एक लाख वोट ही हासिल कर सके और दूसरी सीटों पर तो उनके उम्मीदवार 5 से 20 हज़ार वोट ही जुटा पाए। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पिछले साल हुए सहकारी ग्रामीण विकास बैंकों के चुनाव में भी शिवपाल यादव को भाजपा से हारना पड़ा।