नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षा शुल्क वापस किए जाने की याचिका खारिज कर दी है। दरअसल इस याचिका में अभिभावकों ने दलील दी थी कि जब 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं नहीं हुई तो परीक्षा शुल्क वापस किया जाए। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि अभिभावकों के इस तर्क में कोई दम नहीं है। इसकी तुलना में उच्च परीक्षा बोर्ड्स के तर्क ज़्यादा मज़बूत हैं। उच्च परीक्षा बोर्ड्स का कहना है कि परीक्षा की पूरी तैयारियां की गई थी लेकिन महामारी का अचानक प्रकोप बढ़ने से परीक्षाएं रद्द हो गई और तैयारियों का सारा खर्च बेकार हो गया।
परीक्षा बोर्ड का कहना है कि फीस लौटाना उनके बस की बात नहीं है। परीक्षा फीस से ही बोर्ड परीक्षाएं संचालित की जाती है। दरअसल एक महिला की फीस लौटाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र बोर्ड को इसपर विचार करने का आदेश दिया था। महाराष्ट्र बोर्ड ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा बोर्ड की दलीलें सही हैं। बता दें कि दायर की गई याचिका में कहा गया है कि सीबीएसई ने छात्रों से परीक्षा शुल्क के रूप में करोड़ों रुपए लिए हैं। अब क्योंकि परीक्षा ही रद्द हो गई तो शुल्क लेना पूरी तरह से गलत है। वहीं दिल्ली हाईकोर्ट में वकील रॉबिन राजू ने जनहित में याचिका दायर कर ये मांग की कि सीबीएसई और अन्य सभी बोर्ड 10वीं और 12वीं के छात्रों का परीक्षा शुल्क वापस करे। इस याचिका में उन्होंने कहा कि महामारी के कारण 10 अप्रैल को ही 10वीं की परीक्षाएं रद्द कर दी गईं थी और सीबीएसई ने 7 विषयों के लिए 2100 रुपए लिए थे। इसके बाद 1 जून को 12वीं की परीक्षाएं भी रद्द कर दी गईं थी।
इस याचिका में दलील है कि CBSE एक्जाम सेंटर बनाने, निरीक्षक और परीक्षक के खर्चों के लिए परीक्षा शुल्क लेती है। अब जब परीक्षा ही नहीं हुई तो सीबीएसई यह शुल्क वापस करे क्योंकि ये पैसे तो खर्च ही नहीं हुए। बता दें कि इससे पहले ऑल इंडिया पैरेंट्स एसोसिएशन ने भी परीक्षा शुल्क लौटाने की मांग की थी।