नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र में इस समय कोरोना को लेकर वाद-विवाद जारी है। कोरोना काल में हुई मौतों और ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत हुई या नहीं, इन सब को लेकर बहस छिड़ी है। केंद्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र के दौरान मंगलवार को कहा कि कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी से एक भी जान नहीं गई। उन्होंने कहा किसी राज्य ने ऑक्सीजन की कमी से मौत होने की जानकारी नहीं दी। जिसके बाद केंद्र के इस बयान पर विपक्ष ने आपत्ति जताई। यहां तक कि कांग्रेस ने केंद्र के इस बयान पर सरकार के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाने की धमकी भी दे डाली।
हालांकि केंद्र सरकार के इस तरह के जवाब में राजनीति ज़रूर होती नजर आ रही है लेकिन केंद्र का जवाब संघीय ढांचे के प्रावधानों के अनुसार उपयुक्त था। ऐसा इसलिए क्योंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और इस मामले में केंद्र सरकार उन आंकड़ो को मिलाकर ही जारी करता है जो उसे राज्यों द्वारा दिए जाते हैं। लेकिन एक सच तो यह भी है कि अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोरोना मामले तेज़ी से बढ़ रहे थे और कोरोना चरम पर था। ऐसे में जहां कोरोना की पहली लहर में ऑक्सीजन की मांग 3095 मीट्रिक ही थी वह दूसरी लहर में बढ़कर 9000 मीट्रिक हो गई। ऑक्सीजन की कमी के कारण ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया गया। मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल में कितने लोगों की ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई यह जोड़कर बताना काफी डायनामिक कॉल है। मतलब कि यह एक संवेदनशील और तार्किक विश्लेषण का मुद्दा है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी रोगी के डेथ सर्टिफिकेट पर मौत का वास्तविक कारण कुछ और भी हो सकता है। वहीं IMA के पूर्व अध्यक्ष का कहना है कि अगर किसी रोगी की मौत कार्डिक अरेस्ट के कारण हुई तो उसे ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत कैसे लिखा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऑक्सीजन की बेहतर सप्लाई की जाती तो 15-20 प्रतिशत लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
गौरतलब है कि जब कोरोना की दूसरी लहर शीर्ष पर थी तो 23-24 अप्रैल को दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल से 21 लोगों की मौत होने की खबर आई थी। जिसके बाद सरकार ने प्रोफेसर नरेश कुमार की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति को सभी 21 मरीज़ों की केस शीट की जांच करने का आदेश दिया गया था। समिति से कहा गया था कि वह इस बात की पुष्टि करें कि इन 21 मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है या नहीं। जिसके बाद समिति ने बताया कि जिन 21 मरीजों की मौत हुई वे सभी कोरोना संक्रमित थे और वे गंभीर रूप से बीमार थे। इन सभी की हालत 23 अप्रैल से ही नाज़ुक थी और सभी की मौत 7 घंटे के अंदर ही हुई। समिति ने आगे कहा कि इनमें से कुछ मरीज़ों को कोरोना के अलावा पहले से भी एक से अधिक बीमारियां थीं। जैसे किसी को मधुमेह तो किसी को हाइपरटेंशन और तो और कई मरीज़ दिल की बीमारी से भी पीड़ित थे। अस्पताल में इन सभी मरीज़ों को किसी न किसी तरह की ऑक्सीजन थैरेपी दी जा रही थी। इसके साथ ही ये मरीज़ वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे। समिति की माने तो सभी मरीज़ों को उनके जीवन के अंतिम पलों तक उन्हें सप्लिमेंटल ऑक्सीजन दिया गया। किसी भी मरीज़ की केस शीट में उनकी मौत का कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं लिखा गया है।
हालांकि अस्पताल ने इन सभी 21 मरीज़ों के जो फॉर्म जारी किए हैं उसमें सभी की मौत का कारण श्वसन तंत्र का फेल हो जाना है। लेकिन फॉर्म और केस शीट में मौत का कारण अलग-अलग है। यहां तक कि एक मरीज़ की केस शीट में उसकी मौत का कारण दवाओं की कमी बताया गया है लेकिन ऑक्सीजन की कमी का कहीं ज़िक्र नहीं है। समिति का कहना है कि यह बड़ी हैरानी की बात है दवाओं की कमी का ज़िक्र किया गया है लेकिन अगर ऑक्सीजन की कमी हो रही थी तो इसका जिक्र कहीं क्यों नहीं किया गया।