बहुत भारी था वो वक़्त, जब लोग अपने परिवार वालों या दोस्त की थमती साँसों पर क़ाबू पाने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भागते हुए दिखते थे। बड़ी
भाग दौड़ के बाद, अगर किसी को अस्पताल मिल भी जाता तो बिस्तर नही मिलता था और बिस्तर मिल गया तो ऑक्सीजन सिलेंडर नही मिल पाता था, और इन सभी के नतीजे वही होते रहे, जिसको टालने को हम सभी ने दिन रात एक कर दिया था। लेकिन फिर भी हमारे रिश्तेदार, दोस्त या क़रीबी हम लोगों से लगातार बिछड़ते गए।
डर था कि कोरोना की तीसरी लहर आएगी और एक बार फिर से हमारी परेशानियों का कारण बनेगी, लेकिन हम में से बहुत लोग ऐसे थे, जिन्होंने ये उम्मीद भी लगा रखी थी कि कोरोना की 2 लहर में हुई दिक़्क़तों के बाद सरकार सचेत हो जाएगी और अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए इससे निपटने की पुख्ता तैयारी हो गई होगी। लेकिन आज शायद उन लोगों को भी दुःख होगा की अभी तक तैयारी के नाम पर सरकारें सिर्फ नाईट कर्फ्यु ही लगा सकती हैं, इसके इलावा कोई और ऐसे ठोस क़दम सरकार की तरफ से उठते नही दिख रहे, जिससे ये उम्मीद लगाई जा सके कि अब शायद कोरोना का इंफेक्शन ज़्यादा न फैल सके
रही बात नाईट कर्फ्यु की, तो ये बात मेरी समझ से तो परे है कि इससे कोरोना के खतरे को रोकने में कोई मदद मिलेगी। रात का कर्फ्यु सामान्यतः 11बजे से सुबह 5 बजे तक का होता है, ये वो वक़्त होता है, जब न सड़कों पर लोग होते हैं, न दफ्तरों में, न ही, बाज़ारों, मंदिरों या गिरिजाघरों में, तो फिर ऐसे में रात के अंधेरे में कोरोना को कैसे दूर भगाया जा सकेगा, इसका जवाब तो सिर्फ वो सरकारें ही दे सकती हैं जो पूरे दिन तो किसी तरह की रोकथाम करती नही दिखती और रात के वक़्त बंद बाज़ारों, होटलों और दफ्तरों में कोरोना को दूर भगाने का सोंचती हैं और हमे इहतेयाती क़दम बता कर बेवक़ूफ़ बनाती हैं।
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश समेत मुल्क के कई राज्यों में नाईट कर्फ्यु लगा दिया गया है, और वो भी ऐसा तब हुआ जब, कोरोना का नया वैरिएंट ओमिकरॉन पहले ही 19 राज्यों तक फैल चुका है। तेज़ी से फैलने वाले कोरोना के इस नए वैरिएंट के इलावा कोरोना भी लगातार अपने पैर पसार रहा है। जबकि इससे लड़ने के लिए सरकारों के पास अब तक सबसे बड़ा हथियार नाईट कर्फ्यु ही दिख रहा है।
सच कहूं तो सरकारों को कोरोना असल मे तब ही दिखाई देता है, जब लोग बीच सड़क और अस्पतालों के बाहर गाड़ियों में दम तोड़ने लगते हैं। कबरिस्तानों और शमशान घाटों पर जगह की कमी की वजह से लोगों की लाशें नदियों नालों में बहने पर मजबूर होती हैं।
कोरोना का क़हर एक बार फिर तेज़ी देखने को मिल रहा है। लगातार बढ़ते इस खतरे के बीच लोगों को अब कोरोना के नए वैरिएंट ओमिकरौन का भी डर सता रहा है। देश में अब तक ओमिकरौंन के 800 से भी अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। ये आंकड़ा प्रतिदिन लगातार बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा।
हालांकि नाइट कर्फ्यू को लेकर लोगों ने पहले ही इसको मज़ाक़ बताया था। लोगों का कहना था कि क्या कोरोना रात में ही निकलता है। जिसके बाद पिछले वर्ष पीएम मोदी को देशवासियों के आगे नाइट कर्फ्यू की जरूरत के बारे में बताना पड़ा था। पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्य मंत्रियों के साथ बैठक कर हालात का जायज़ा लेते हुए नाइट कर्फ्यू का समर्थन करते हुए कहा था कि इसे कोरोना कर्फ्यू का नाम देने से अवेयरनेस बढ़ेगी।
पीएम ने कहा था कि दुनिया भर में रात के कर्फ्यू को स्वीकार किया है, अब हमें नाईट कर्फ्यू को कोरोना कर्फ्यू के नाम से याद रखना चाहिए। पीएम मोदी ने कहा, ‘कुछ इंटेलेक्चुअल डिबेट करते हैं क्या कोरोना रात में आता है। हकीकत में दुनिया ने रात के कर्फ्यू के प्रयोग को क़बूल किया है, क्योंकि हर आदमी को कर्फ्यू के समय में ख्याल आता है कि मैं कोरोना काल में जी रहा हूं और बाकी जीवन व्यवस्थाओं पर कम से कम असर होता है।
मोदी की इस बयान से ही साफ़ होता है की नाईट कर्फ्यू से लोग सन्तुष्ट नहीं होते, और हों भी कैसे, इसके फायदे क्या होते हैं, कोई मुझे ही तो बता दे। अगर इसके लाभ होते दीखते, तो न तो लोग कभी इस पर सवाल उठाते और न ही पीएम मोदी को इस पर सफाई देनी पड़ती।
हज़ार तकलीफें हम झेल चुके, अब शक्ति बाक़ी नहीं रही, नई परेशानियों का सामना करने की। हकीकत में कोरोना को रोकना है तो पहले, सियासी दलों की चुनावी रैलियों को रोको, सड़कों और बाज़ारों में भीड़ कम करने के उपाय बताओ, ताकि हम सच में सन्तुष्ट हो सकें की अब हमें इससे डरने की आवश्यकता नहीं। घर पर बैठना तो हमारे वश में है, लेकिन बड़ी बड़ी चुनावी जन सभाओं पर रोक लगाना या बाज़ारों को बंद करना या भीड़ पर लगाम लगाना तो सरकारों का ही काम होता है, जिस पर फिलहाल वो खरी उतरती दिखाई नहीं दे रही। बेहतर होता की सरकारें अभी से सचेत हो जाये, ताकि पहले की तरह फ़िर से हालात बेक़ाबू न हो जाए।