जालंधर: पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है लेकिन अब तक पंजाब कांग्रेस में चल रहा विवाद अनसुलझा है। इस दौरान नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर दिल्ली में सोनिया गांधी से मिले। नवजोत सिंह सिद्धू की इस तरह लगातार आलाकमान से हो रही मुलाकात ने सियासत में हलचल मचा दी है। यही कारण है कि पंजाब में कांग्रेस के नेता भी असमंजस में पड़ गए हैं।
दरअसल मुद्दा यह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ही पंजाब का नेतृत्व कर रहे हैं और पंजाब में वही कांग्रेस का मुख्य चेहरा है। लेकिन दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू भी इस समय गांधी परिवार के करीब नज़र आ रहे हैं। तभी तो कभी पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी तो कभी सोनिया गांधी से उनकी मुलाकात हो रही है। सभी नेता भी गांधी परिवार और नवजोत सिंह सिद्धू की करीबियों से भली-भांति अवगत हैं। इसलिए उन्हें इस बात का डर है कि कहीं पार्टी आलाकमान कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह नवजोत सिंह सिद्धू के हाथ पंजाब की बागडोर न सौंप दे। इसलिए जब पंजाब कांग्रेस के विधायकों से पूछा जाता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू में अधिक महत्वपूर्ण कौन हैं तो उनका जवाब होता है कि पार्टी आलाकमान जो भी फैसला लेगी वो हम सबको स्वीकार होगा। लेकिन एक नज़र अगर विधायकों की संख्या पर डाली जाए तो अब भी 60-65 विधायक कैप्टन अमरिंदर सिंह के समर्थन में हैं। इसके साथ ही कैबिनेट के 17 में से 13 मंत्री भी कैप्टन अमरिंदर के साथ है। यही नहीं अधिकतर सांसद और जिलाध्यक्ष भी कैप्टन अमरिंदर सिंह का ही समर्थन कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू के साथ कैबिनेट के केवल 4 मंत्री ही हैं और 4 विधायक ही उनका समर्थन कर रहे हैं। इसी कारणवश कांग्रेस चाहते हुए भी नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ जाकर कोई पद नहीं दे पा रही है।
बता दें कि कांग्रेस आलाकमान नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहती है लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इसके खिलाफ हैं। कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने इस ओर इशारा किया था जिसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह नाराज़ नज़र आए थे। इसके बाद हरीश रावत ने अपना बयान बदलते हुए कहा था कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ही आखिरी निर्णय लेंगी।