भगवान शिव जिस रूप में और जिस जगह अपने दिव्य और अद्भुत दर्शन देते हैं वह जगह है उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर। यह मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है । करोड़ों श्रद्धालुओं की भक्ति और आस्था के इस मंदिर के कुछ ऐसे रहस्य हैं जो आपको अचंभित कर देंगे। तो आइये जानते हैं इन अनसुलझे रहस्यों को
1. क्या है महाकाल नाम का रहस्य ?
कहा जाता है कि महाकाल का संबंध केवल मृत्यु से है पर यह सत्य नहीं है। सही से समझा जाए तो काल के दो अर्थ होते हैं एक समय और दूसरा मृत्यु। इसी काल को महाकाल भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय में यहीं से पूरे विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर रखा गया। दूसरा कारण भी काल से ही जुड़ा है दरअसल महाकाल का शिवलिंग तब प्रकट हुआ जब महादेव को एक राक्षस दूषण का अंत करना था भगवान शिव उस राक्षस का काल बनकर आए और उसका अंत किया। उसी दिन के बाद इस नगरी को अवंती नगरी उज्जैन के नाम से जाना जाता है, कहते हैं यहाँ भगवान शिव काल के अंत तक यहीं पर रहेंगे इसलिए भी इन्हें महाकाल कहा जाता है।
2. कोई भी राजा या मंत्री यहाँ रात नहीं बिताता
उज्जैन बाबा महाकाल की नगरी है, मान्यता है कि यहाँ के महाराजा वही हैं और जब तक वह हैं किसी भी राजा महाराजा या मंत्री की हिम्मत नहीं कि वह अपने पद के साथ यहाँ रात गुजार सके। अब तक जितने भी बड़े नेताओं ने ऐसा करने की हिम्मत दिखाई उनके साथ अनहोनी ही हुई है। यहाँ के अंतिम राजा विक्रमादित्य थे। पौराणिक कथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुक सकता है वर्तमान में भी कोई राजा या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री यहां रात में नहीं रुक सकता।
इस बात का साक्ष्य कई बार मिल चुका जैसे एक बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब मंदिर के दर्शन करने के बाद रात में यहां रुके थे तो अगले ही दिन ही उनकी सरकार गिर गई थी।
ऐसा ही कुछ कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा के साथ भी हुआ था जब वह एक बार उज्जैन में रात रुके तो कुछ ही दिनों के अंदर ही उन्हें अपना इस्तीफा देना पड़ा था।
3. भस्म आरती से श्रृंगार का क्या है रहस्य
प्राचीन समय से ही महाकाल के शिवलिंग पर चिता की ताज़ी भस्म से श्रृंगार कर आरती होती रही और यह प्रथा सैकड़ों वर्षों तक चली। लेकिन एक बार कुछ ऐसा हुआ कि उस दिन के बाद से महाकाल के शिवलिंग कि भस्म से श्रृंगार व आरती होना बंद हो गई दरअसल एक बार जब उज्जैन के शमशान में कोई भी शव नहीं आया तो उस समय के पुजारी ने अपने बेटे की बलि देकर उसकी चिता से निकली भस्म से महाकाल का श्रृंगार व आरती की। पुजारी की इस भक्ति व समर्पण को देखकर महाकाल बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने पुजारी के बेटे को जीवन दान दे के कहा की आज के बाद मेरा श्रृंगार व आरती कपिला गाय के गोबर के कंडे अमलतास मिलाकर तैयार किए गए लेप से करें , तब से लेकर अब महाकाल के शिवलिंग का श्रृंगार इसी लेप से रोज़ किया जाता है।
4. स्वयं शिव ने शुरू की भस्म आरती प्रथा
जितना पुराना महाकालेश्वर मंदिर है उतना ही पुराना एक रहस्य है और वह है इस मंदिर में विराजमान महाकाल की कई सालों तक चली भस्म आरती। जिसकी कहानी बड़ी भी रोचक है दरअसल प्राचीन काल में राजा चंद्र सिंह, भगवान् शिव के बहुत बड़े भक्त थे जब राजा रिपुदमन ने उज्जैन पर आक्रमण किया और राक्षस दूषण के जरिए वहां की प्रजा को प्रताड़ित किया तब राजा चंद्र सिंह ने मदद के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की, चंद्र सिंह की प्रार्थना सुनकर भगवान् शिव ने दूषण राक्षस का संहार कर दिया और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया और वह हमेशा के लिए यहीं उज्जैन में बस गए तो इस तरह से भस्म आरती की शुरुआत हुई।
5. सिर्फ नागपंचमी को खुलने वाला रहस्मयी नागचंद्रेश्वर मंदिर
उज्जैन स्थित नागचन्द्रेश्वर मंदिर देश का एक ऐसा मंदिर है जिसके कपाट साल में केवल एक दिन यानि केवल सावन महीने में नागपंचमी के दिन खोले जाते हैं। यह मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर के परिसर में सबसे ऊपर यानी तीसरे खंड में स्थित है। ग्यारहवीं शताब्दी के इस मंदिर में नाग पर बैठे शिव-पार्वती की अतिसुंदर प्रतिमा है, जिसके ऊपर छत्र के रूप में नागदेवता अपना फन फैलाए हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि नागराज तक्षक स्वयं इस मंदिर में रहते हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से उज्जैन लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।
6. स्वयंभू ज्योतिर्लिंग
देश में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल ही एकमात्र सर्वोत्तम शिवलिंग है अर्थात् आकाश में तारक शिव लिंग पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर शिवलिंग ही मान्य शिवलिंग है मान्यता है कि महाकाल मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है विश्व भर में कालगणना की नगरी कहे जाने वाले उज्जैन में मान्यता है कि भगवान महाकाल ही समय को लगातार चलाते हैं और काल भैरव काल का नाश करते हैं।
7. दक्षिण मुखी शिवलिंग
अद्भुत दक्षिण मुखी शिवलिंग इस समय पूरे संसार में सिर्फ महाकालेश्वर मदिर उज्जैन में है बाकी सभी शिव मंदिरों में स्थापित शिवलिंग और अन्य ज्योतिर्लिंग की जलाधारी उत्तर दिशा की ओर है किंतु महाकालेश्वर ही एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसकी जलाधारी दक्षिण दिशा की ओर है इसलिए इन्हें दक्षिण मुख्य महाकाल के नाम से भी जाना जाता है।
8. मंदिर जहां भगवान को पिलाई जाती है मदिरा
वैसे अपने देश में धार्मिक स्थलों में मदिरा का सेवन पाप है लेकिन महाकाल मंदिर परिसर जहां भैरव बाबा का मंदिर स्थित है दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां आज तक यह कोई नहीं जानता है कि भगवान को शराब पिलाने का रिवाज कब से है और आखिर इतनी मदिरा पीते हैं तो जाती कहां है। महाकाल के मंदिर परिसर से लेकर इसके रास्ते में बहुत सारी शराब की दुकानें लगाई गई हैं जहाँ प्रसाद बेचने वाले भी शराब अपने पास रखते हैं
9. क्या है जूना महाकाल
बहुत साल पहले जब मुगलों ने शिवलिंग को नष्ट करने की कोशिश की गई जिसके कारण पुजारियों ने उसे छुपा दिया और इसकी जगह दूसरा शिवलिंग रखकर उसकी पूजा करने लगे बाद में उन्होंने उस शिवलिंग को वही महाकाल के प्रांगण में अन्य जगह स्थापित कर दिया जिसे आज जूना महाकाल कहा जाता है।
10. कौन था वह रहस्मयी भक्त
वैसे तो मंदिर में विराजमान भगवान् हमेशा कुछ न कुछ चमत्कार दिखाते रहते हैं लेकिन वह सभी चमत्कार आम लोगों तक नहीं पहुंच पाते हैं ऐसा ही एक दुर्लभ चमत्कार महाकाल मंदिर के गर्भ गृह में लगे सीसीटीवी कैमरे में देखने को मिला जब एक अदृश्य शक्ति रात में मौजूद है जो कि महाकाल की पूजा कर रहा है और किसी सदस्य ने इस चमत्कार को सार्वजनिक कर दिया इसलिए इस तस्वीर को सावन महाशिवरात्रि में बाबा महाकाल बेलपत्र से ढक दिया जाता है।और उसके बाद यहां भक्तों का आना मना है।