नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने और उन्हें फिर से उनके असली रूप लौटाने की अपील करते हुए कहा कि इसी में हम सबका हित है, जग का हित है। मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में आज कहा कि हमारे देश में अनेक राज्य हैं, अनेक क्षेत्र है जहाँ के लोगों ने अपनी प्राकृतिक विरासत के रंगों को सँजोकर रखा है। इन लोगों ने प्रकृति के साथ मिलकर रहने की जीवनशैली आज भी जीवित रखी है। ये हम सबके लिए भी प्रेरणा है। हमारे आस-पास जो भी प्राकृतिक संसाधन है, हम उन्हें बचाएं, उन्हें फिर से उनका असली रूप लौटाएँ। इसी में हम सबका हित है, जग का हित है।
उन्होंने कहा कि वीरता केवल युद्ध के मैदान में ही दिखाई जाए, ऐसा जरूरी नहीं होता। वीरता जब एक व्रत बन जाती है और उसका विस्तार होता है तो हर क्षेत्र में अनेकों कार्य सिद्ध होने लगते हैं। मुझे ऐसी ही वीरता के बारे में ज्योत्सना ने चिट्ठी लिखकर बताया है। जालौन में एक पारंपरिक नदी थी – नून नदी। नून, यहाँ के किसानों के लिए पानी का प्रमुख स्त्रोत हुआ करती थी, लेकिन, धीरे-धीरे नून नदी लुप्त होने की कगार पर पहुँच गई, जो थोड़ा बहुत अस्तित्व इस नदी का बचा था, उसमें वो नाले में तब्दील हो रही थी, इससे किसानों के लिए सिंचाई का भी संकट खड़ा हो गया था। जालौन के लोगों ने इस स्थिति को बदलने का बीड़ा उठाया। इसी साल मार्च में इसके लिए एक कमेटी बनाई गई। हजारों ग्रामीण और स्थानीय लोग स्वतः स्फूर्त इस अभियान से जुड़े। यहाँ की पंचायतों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया, और आज इतने कम समय में, और बहुत कम लागत में, ये नदी, फिर से जीवित हो गई है। कितने ही किसानों को इसका फायदा हो रहा है। युद्ध के मैदान से अलग वीरता का ये उदाहरण, हमारे देशवासियों की, संकल्प शक्ति को दिखाता है, और ये भी बताता है कि अगर हम ठान लें, तो, कुछ भी असंभव नहीं है और तब ही तो मैं कहता हूँ – सबका प्रयास।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हम प्रकृति का संरक्षण करते हैं तो बदले में प्रकृति हमें भी संरक्षण और सुरक्षा देती है। इस बात को हम अपने निजी जीवन में भी अनुभव करते हैं और ऐसा ही एक उदाहरण तमिलनाडु के लोगों ने व्यापक स्तर पर प्रस्तुत किया है। ये उदाहरण है तमिलनाडु के तूतुकुड़ी जिले का। हम जानते हैं कि तटीय इलाकों में कई बार ज़मीन के डूबने का खतरा रहता है। तूतुकुड़ी में भी कई छोटे द्वीप और टापू ऐसे थे जिनके समुद्र में डूबने का खतरा बढ़ रहा था। यहाँ के लोगों ने और विशेषज्ञों ने इस प्राकृतिक आपदा का बचाव प्रकृति के जरिये ही खोजा। ये लोग अब इन टापुओं पर पाल्मेरा के पेड़ लगा रहे हैं। ये पेड़ तूफानों में भी खड़े रहते है और जमीन को सुरक्षा देते हैं। इनसे अब इस इलाके को बचाने का एक नया भरोसा जगा है। उन्होंने कहा कि प्रकृति से हमारे लिये खतरा तभी पैदा होता है जब हम उसके संतुलन को बिगाड़ते हैं या उसकी पवित्रता नष्ट करते हैं। प्रकृति माँ की तरह हमारा पालन भी करती है और हमारी दुनिया में नए-नए रंग भी भरती है।