इतना कुछ खो चुके हैं हम, की क्या करें अब लोगों के जाने का भी ग़म। ये एक लाइन ही काफी है, आज देश की सबसे पुरानी पार्टी की हालत को बताने के लिए। अब तो पार्टी की हालत ऐसी है की ‘चोट खाये किधर की और बचाये किधर की।’
देश में सबसे लम्बे समय तक केंद्र की सत्ता पर आसीन रह चुकी, इस पार्टी के संसद में आज गिनती के सांसद रह गए हैं। किसी ने कहा था की देश को इस पार्टी से मुक्त किया जायेगा, यह तो हो न सका और शायद होना संभव भी नहीं, लेकिन इस पार्टी का अब लगभग सब कुछ खो चूका है और अब ये पार्टी अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है। कुछ एक राज्यों में इस पार्टी की सरकार, इसके नाम को ज़िंदा रखने की जुगत में आज भी लगी है।
जी हाँ, आपका अनुमान बिलकुल सही है, मैं बात कर रहा हूँ, कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की। जिसने देश को जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru), लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) से लेकर इंदिरा गाँधी (Indira Gandhi), राजीव गाँधी और मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) जैसे कद्दावर और लोकप्रिय प्रधान मंत्री दिया। लेकिन मनमोहन सिंह के 2 टर्म, यानी 10 सालों की सरकार के बाद जो इस पार्टी की दुर्दशा हुई, वो अब शब्दों में बताना भी मुश्किल होता है। कारण इसके लम्बे सत्ता के दौर के बावजूद लगातार खाली होती हुई पार्टी की।
हम में से ज़्यादातर लोग ऐसे हैं, जिसने बचपन से लेकर लम्बे वक़्त तक कांग्रेस की सत्ता को देखते सुनते आये हैं। न सिर्फ केंद्र की सरकार, बल्कि लगभग सभी राज्यों में भी कांग्रेस या उसके सहयोगियों की ही सरकारें हुआ करती थी। लेकिन 2014 के संसदीय चुनाव ने न सिर्फ पुरे देश की दशा बदल दी, बल्कि कांग्रेस को एक तरह से आज खोखला सा भी कर दिया।
कांग्रेस आज जहाँ पहुँच गयी है, इसमें जितना रोल विपक्षी पार्टियों का है, उससे कहीं ज़्यादा अपनी इस हालत के लिए खुद कांग्रेस पार्टी और उसके नेता ज़िम्मेदार ठहराए जाते हैं। पार्टी के लगातार होते कई ग़लत फैसले ने उसको सत्ता से बाहर तो कर ही दिया साथ ही उसको तक़रीबन उसको पूरी तरह से धराशाई करने में भी कोई कसर बाक़ी नहीं रखी।
आज कांग्रेस पार्टी का ये हाल है की उसके स्टार प्रचारकों में शामिल नेता आर पी एन सिंह जैसे पुराने लोग भी ऐन चुनाव के समय पर पाला बदल कर बीजेपी में चले जाते हैं। इससे पहले ज्योतिरादित्य सिंदिया, जितिन प्रसाद जैसे नौजवान लेकिन तजुर्बेकार नेता हों या कांग्रेस के कद्दावर कैप्टेन अमरिंदर सिंह, ये सभी नेता कांग्रेस का हाथ झटक कर कमल की खुशबु लेने निकल पड़े।
ये सभी दिग्गज एक समय में कांग्रेस पार्टी के मज़बूत खम्भे हुआ करते थे, बल्कि कांग्रेस नेता राहुल गाँधी के इर्द गिर्द अक्सर इन्ही लोगों का जमावड़ा देखा जाता था। लेकिन एक के बाद एक ऐसी कई चेहरे कांगेस के बेगाने होते गए और इन सभी को बीजेपी का भगवा रंग भाता गया और ये उसके होते चले गए। बल्कि जो कभी कांग्रेस के आज़ाद थे वो भी अब बीजेपी के ग़ुलाम बनने को उतारू दीखते हैं। हालांकि अभी तक वो उनके हो तो नहीं सके हैं, लेकिन उन पर भी अब बीजेपी सरकार के ‘भूषण’ का ताज सज चूका है।
अब इसको कांग्रेस की कमज़ोरी कहिये या इन नेताओं की मौक़ापरस्ती। जब कांग्रेस का अच्छा वक़्त था तो इसी पार्टी से इन नेताओं की पहचान बनी और अब जब उसके पास, देने को कुछ बचा नहीं, तो ये नेता पार्टी की साख भी लेने से बाज़ नहीं आये। पार्टी की मज़बूरी माने या कमज़ोर लीडरशिप, की इसका लगातार तमाशा बनता रहा और वो मूकदर्शक बनकर उन्हें ताकती रह गई।
कांग्रेस पार्टी का लम्बे वक़्त से कोई परमानेंट राष्ट्रिय अध्यक्ष नहीं है। सोनिया गाँधी (Sonia Gandhi) बीमारी की हालत में पार्टी की कमज़ोर डोर को खींचने की कोशिश में लगी तो हैं, लेकिन मौक़ापरस्त नेताओं के बदलते तेवर का सामना करने में पार्टी सफल नहीं हो पा रही है। सोनिया के दोनों बच्चे, राहुल (Rahul Gandhi) और प्रियंका (Priyanka Gandhi) अपने दमदार अंदाज़ के साथ जीतोड़ मेहनत करते दिखते तो हैं, लेकिन पार्टी आम जनमानस से अब इतनी दूर आ चुकी है की सत्ता की मंज़िल की दुरी उससे और बढ़ती ही जा रही है।
लोगों का मानना है की कांग्रेस पार्टी को न सिर्फ अपनी खोई साख़ वापस लानी है, बल्कि अब उसे अपनी सोंच और नजरिया भी बदलने की ज़रूरत है। कांग्रेस को अपने सही और गलत नेताओं की पहचान भी करना ज़रूरी है। आज पार्टी इस बात से ज़्यादा जूझती नज़र आती है की वो भरोसा करे भी तो किस पर करे। क्योंकि जिस पर वो भरोसा करने आगे बढ़ती है वही नेता आँखें तरेरने लगता है। श यद् यही कारण है की कई मौक़ों पर कांग्रेस हाथ पे हाथ धरे बैठी दिखती है जो की न सिर्फ उसकी कमज़ोरी को उजागर कर देती है, बल्कि उसकी लीडरशिप पर भी सवालिया निशान लगाती है।
आह….. कहाँ गया कांग्रेस का वो वक़्त जब पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले स्वर्गीय नेता अहमद पटेल (Ahmad Patel) ने राज्य सभा की एक सीट जीतने के लिए विकशी भाजपा के नाको चने चबवा दिए थे। पूरा देश देर रात तक साँसे थामे बैठा था और आखिरकार फाइटर अहमद पटेल ने अपने साथ साथ पार्टी का भी लोहा मनवा दिया और अपनी जीत दर्ज कर बड़ी मिसाल पेश की।
आज कांग्रेस को ऐसे ही चाणक्य और भरोसेमंद नेताओं की ज़रूरत है जो बुरे से बुरे समय में भी पार्टी के साथ मज़बूती से खड़ा रहे और अपने निजी फायदे से ज़्यादा पार्टी के फायदे को तरजीह देकर आगे बढ़े। कांग्रेस सत्ता में आये या नहीं, लेकिन विपक्ष के तौर पर भी उसको मज़बूत होना समय की मांग है, वर्ण लोकतंत्र में तानाशाही होते देर नहीं होगी।