लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर जहां सभी पार्टियां चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है वहीं बसपा ने भी अपनी 2007 की चुनावी रणनीति को इस बार मैदान में उतारने की तैयारी की है। दरअसल चुनाव से पहले बसपा ने प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन किया है। लेकिन अब पार्टी ने इस सम्मेलन के नाम में बदलाव कर दिया है। बसपा ने आज से शुरू होने वाले ब्राह्मण सम्मेलन का नाम बदलकर ‘प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी’ कर दिया है। बता दें कि इस सम्मेलन में केवल नाम का ही बदलाव है इससे उद्देश्य और प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं होगा।
‘प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी’ 23 जुलाई यानी आज से शुरु हो रहा है। इस सम्मेलन की शुरुआत आज अयोध्या से की जाएगी। बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सदस्य सतीश मिश्रा को इस सम्मेलन की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई है जिसके तहत वे कई कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ-साथ हनुमान लला के दरबार में माथा टेकेंगे। इसके बाद राम जन्मभूमि परिसर पहुंचकर रामलला की पूजा अर्चना करेंगें। यही नहीं इसके बाद वे सरयू के तट पर भी जाएंगे जहाँ वे 100 लीटर दूध से मंत्रोच्चार के साथ दुग्धाभिषेक करेंगे। जानकारी यह भी है कि सतीश मिश्रा अयोध्या के श्रद्धालुओं से आशीर्वाद लेने भी जाएंगे। बता दें कि अयोध्या में सम्मेलन के बाद बसपा 24-25 जुलाई को अंबेडकर नगर में भी कार्यक्रम का आयोजन करेगी। इसके बाद 26 जुलाई को प्रयागराज में और 27 जुलाई को कौशाम्बी में सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। इसी कड़ी में 28 जलाई को प्रतापगढ़ और 29 जुलाई को सुल्तानपुर में कार्यक्रम होगा। चुनावी रणनीति के अनुसार सतीश मिश्रा उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में ब्राह्मण समाज का प्रभुत्व अधिक है वहां का दौरा भी करेंगे।
गौरतलब है कि बसपा समय-समय पर अपने नारे, अपनी कार्यशैली और चेहरे बदलती रहती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। लेकिन यह बदलाव बसपा को किस हद तक फायदा पहुंचाता है यह देखना काफी रोमांचक होगा। प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर बसपा ने जो ब्राह्मण वोटों का खेल खेला है इससे न केवल भाजपा बल्कि सपा को भी चोट पहुंचने की संभावना है। जानकारी हो कि साल 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा इसी ब्राह्मण नीति के साथ मैदान में उतरी थी। यही नहीं बसपा ने प्रदेश की 403 में से 206 सीटों पर जीत भी दर्ज की थी। बसपा ने 30 प्रतिशत वोट हासिल करते हुए सरकार बनाई थी। यह सबकुछ अचानक नहीं हुआ था बल्कि इसके पीछे मायावती ने कड़ी रणनीति तैयार की थी। इस कड़ी में मायावती ने चुनाव से एक साल पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। यही नहीं मायावती ने दलित, ब्राह्मणों, ओबीसी और मुसलमानों के साथ संतुलन स्थापित कर लिया था। इस बार भी BSP इसी रणनीति पर उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ने वाली है।