24 फरवरी की वो रात मानो ऐसी थी, जैसे कभी सवेरा होने की उम्मीद ही न रह गई हो, चारों ओर सिर्फ खौफ और दहशत का माहौल। ये वो दिन था जब यूक्रेन (Ukraine) पर ज़बरदस्त रुसी हमले (Russian Attacks) की शुरुआत हुई थी। जितनी भी खबर मिल रही थी सभी को सुन कर दिल रोने को कर रहा था, बस हम सभी की एक ही इच्छा थी की काश कोई ऐसा रास्ता मिल जाये, जिससे की हम फ़ौरन अपने देश सुरक्षित लौट सकें। लेकिन स्थिति इतनी जल्दी, इतनी ज़्यादा ख़राब हो चुकी थी, की किसी को भी सोंचने समझने तक का वक़्त नहीं मिल सका।
ये दर्दनाक और दिल को झकझोर देने वाली आपबीती बताया है यूक्रेन के इवानो शहर के फ्रेंकविस्क नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से मेडिकल की पढाई कर रही नेओम राशिद ने। उत्तर प्रदेश के अलीगढ निवासी सैयद राशिद आलम की बेटी नेओम, मेडिकल के दूसरे साल की छात्रा हैं। नेओम के पिता का पैतृक शहर झारखण्ड का हज़ारीबाग़ है, लेकिन बीते कई वर्षों से उनका परिवार अलीगढ में रहता है। नेओम राशिद भी उन भारतीय छात्रों (Indian Students In Ukraine) में शामिल थी, जो की यूक्रेन पर रुसी हमला शुरू हो जाने के बाद से यूक्रेन में फँस गए थे। नेओम की किस्मत अच्छी रही और अपनी खुद की समझ और सूझ बूझ का बेहतरीन मिसाल पेश करते हुए, भारत की इस बहादुर बेटी बड़ी हिम्मत से फैसले लेते हुए एक के बाद एक क़दम बढ़ाते हुए अपने देश सुरक्षित वापस आने में कामयाब रही।
भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे ऑपरेशन गंगा (Operation Ganga)अभियान के तहत युद्धग्रस्त देश यूक्रेन से भारत लौटे भाग्यशाली छात्र छात्राओं में नेओम राशिद भी शामिल हैं। नेओम सकुशल अपने देश वापस लौट आई, लेकिन यूक्रेन के इवानो (Ivano) शहर से लेकर देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) तक का सफर उनका जैसे काँटों भरा रहा। हर तरह की तकलीफ और परेशानी से उन्हें गुज़रना पड़ा, तब कहीं जा कर रोमानिया (Romania) के रास्ते उन्हें दिल्ली की उड़ान मिली।
आपके पसंदीदा और लोकप्रिय न्यूज़ पोर्टल ख़बर मंत्रा लगातार यूक्रेन युद्ध और वहां फंसे भारतियों की ख़बरों को प्रमुखता से न सिर्फ अपने पाठकों तक पहुंचा रहा है, बल्कि भारत सरकार से भी फंसे हुए भारतियों की हर संभव मदद की बारम्बार अपील कर रहा है।
यूक्रेन सेअपने देश और परिवार तक सकुशल पहुँचने में सफल रही भारत की बहादुर बेटी नेओम राशिद ने खबर मंत्रा से ख़ास बातचीत में बताया की युद्ध के बीच से वो और उनके अन्य भारतीय दोस्तों का समूह किस प्रकार से मुसीबतों का सामना करते हुए भारत लौटने में कामयाब हो सके हैं।
नेओम ने बताया युद्ध शुरू होने के आसार तो कुछ दिनों से बताये जा रहे थे लेकिन कहीं से इसको पुष्टि नहीं हो पा रही थी। भारतीय दूतावास (India In Ukraine) ने भी यूक्रेन में रह रहे भारतियों के लिए एडवाइज़री (Advisory) जारी कर रहे थे की सभी लोग तुरंत सुरक्षित स्थानों पर चले जाएँ। लेकिन कैसे जाएँ और कहाँ जाएँ इसकी तस्वीर हमारे सामने साफ़ नहीं थी। हवाई अड्डा (Airports) बंद हो चूका था और कोई कैब या टैक्सी भी इतने छात्रों को ले जाने के लिए तैयार नहीं थी।
इस बीच पुरे शहर में युद्ध का सायरन लगातार बज रहा था। सबसे पहले सभी बच्चों ने आने वाले कुछ दिनों तक के लिए फ़ूड स्टॉक्स करने के लिए दहशत के साये में बाहर निकले। खाने पीने की सामग्री इकठ्ठा करने के साथ ही सभी बच्चों ने एटीएम से ज़रूरत के हिसाब से पैसे भी निकाले और उसके बाद इंतज़ार करने लगे भारतीय दूतावास (Indian Embassy) के दिशा निर्देश का। कुछ समय तक तो इन्हे दूतावास से मश्वरे मिलते रहे, नेओम के जो भारतीय मित्र कीव और खारकीव में फंसे थे, उन्हें तो भारतीय दूतावास ने सुरक्षित बंकरों में जाने को कहा था। 2 दिनों के बाद दूतावास ने एक अन्य एडवाइज़री जारी कर कहा की जो भी भारतीय जहाँ है वहां से पास के पडोसी देशों के बॉर्डर तक पहुँचने की कोशिश करें। लेकिन उस बॉर्डर तक कैसे जाना है ये वहां फंसे लोगों को मालूम नहीं था।
नेओम राशिद ने बताया की जब सभी रास्ते बंद होते दिखने लगे और सामने मौत का साया दिख रहा था तो आखरी कोशिश के तौर पर हम सभी भारतीय मित्रों ने खुद ही अपनी सवारी करके रोमानिया बॉर्डर की तरफ निकलने का फैसला किया, क्योंकि हमारे इवाना शहर से सबसे पास रोमानिया बॉर्डर ही पड़ता है। 26 फरवरी को आस पास रह रहे भारतीय छात्रों ने मिलकर फैसला किया की खुद ही एक प्राइवेट बस बुक करके रोमानिया बॉर्डर की तरफ निकला जाए। 3-4 घंटों का सफर करके रोमानिया बॉर्डर से काफी पहले, बस वाले ने बस रोक दी क्योंकि आगे बहुत लम्बा जाम लगा हुआ था। उसी बॉर्डर से यूक्रेन के स्थानीय लोग भी बाहर की तरफ निकल रहे थे, जिस वजह से वहां कई किलोमीटर लम्बा जाम लग गया।
“वहां रुक कर जाम ख़त्म होने का इंतज़ार करना बेकार था, और सर पर बमबारी का खतरा हर वक़्त मंडरा रहा था, इसलिए बस से वहीँ वहीँ उतर कर -6 डिग्री के तापमान में भी हम लोगों ने पैदल ही रोमानिया बॉर्डर की तरफ बढ़ने का निर्णय किया। हाथों में अपने ज़रूरत के सामान लिए और दिल ओ दिमाग़ पर युद्ध का साया उठाते हुए घंटों कई किलोमीटर तक पैदल चल कर हम लोग रोमानिया बॉर्डर तक पहुंचे, लेकिन वहां पहुँच कर भी कोई ख़ास इंतज़ाम नहीं था, बस हर तरफ आपा धापी का माहौल दिख रहा था। जिसकी वजह से बॉर्डर क्रॉस करने में हम लोगों को 17-18 घंटे लग गए।”
नेओम राशिद ने कहा की उसके बाद वहां भारतीय दूतावास की बस मिली, बस में बैठ कर भी हम लोगों को 4-5 घंटे लग गए इमीग्रेशन और अन्य कागज़ी कार्यवाई में। इस बीच शाम से सुबह हो गई और वहां से रोमानिया की राजधानी बोकारिस्ट(Bukharist) तक का 8 घंटों का सफर बाक़ी था। बोकारिस्ट पहुँच कर वहां दूतावास ने रिफ्यूजी शेल्टर ले जाया गया। शेल्टर में 2-3 दिनों तक रह कर जिस सीक्वेंस में हमारा इमीग्रेशन हुआ था, उसी सीक्वेंस में हम लोगों को भारत की उड़ान मिली।
नेओम ने बताया की लेकिन इस दौरान हमारे कई दोस्त हम से बिछड़ गए, कुछ बेहोश हो गए, कड़कड़ाती ठण्ड में घंटों पैदल चल कर कुछ अन्य की भी तबियत ख़राब हो गयी, किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था की कौन कहाँ फँस गया है, ज़्यादातर लोगों के मोबाइल की बैट्री भी डिस्चार्ज हो चुकी थी। जिनसे संपर्क हो सका और जो रोमानिया बॉर्डर क्रॉस कर सके ऐसे सभी भारतीय लोग साथ स्वदेश लौटने में भाग्यशाली रहे।
दिल्ली पहुँच कर आज भी यही एहसास होता है की हम मौत के मुहं से किसी तरह वापस निकल आये, आज भी दिमाग़ में सायरन की आवाज़ गूंजती है और वह वक़्त भुलाये नहीं भूलता है।
नेओम राशिद ने आखिर में भारत सरकार (Govt of India) से यह अपील भी की है की जितना जल्दी हो सके यूक्रेन में फंसे सभी भारतीयों को सुरक्षित अपने देश लाया जाए। यूक्रेन के हालात दिन ब दिन बदतर होते जा रहे हैं और रुसी हमला लगातार यूक्रेन की तबाही का सबब बन रहा है। ऐसे में हर तरह के कष्ट और चुनौतियों का सामना करते हुए, यूक्रेन से स्वदेश लौटी भारत की बहादुर बेटी नेओम राशिद को खबर मंत्रा सलाम करता है।